आखिर कांग्रेस खुश क्यो है?
सतीश जोशी
महाराष्ट्र, झारखंड में क्षेत्रीय दलों की जूनियर पार्टनर बन कर खुश होने के बजाय कांग्रेस को कर्नाटक, गोवा, हरियाणा, गुजरात विधानसभा चुनाव व 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के कारणों पर गंभीरता से चिंतन-मनन करना चाहिये।
और यह हो गया तो
वैसे भी कांग्रेस पार्टी के नेताओं को ज्यादा खुशी नहीं मनानी चाहिये क्योंकि महाराष्ट्र में तो कांग्रेस विपरीत विचारधारा वाली शिवसेना के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में काम कर रही है जो समय-समय पर अपने हिंदूवादी एजेंडे को आगे करते रहते हैं। शिवसेना के नेता कभी भी पलटी मार सकते हैं। मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर है, जहां भाजपा मात्र 5 सीटों के अंतर से सरकार बनाने से रह गयी थी। कांग्रेस के असंतुष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया कर्नाटक की तरह कब कोई नया धमाका कर दें इसका किसी को कुछ पता नहीं है।
पिछलग्गू होने से खोया आधार
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा, बिहार में आरजेडी, महाराष्ट्र में एनसीपी, झारखण्ड में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, पश्चिम बंगाल में कभी ममता बनर्जी तो कभी वामपंथी दल, कर्नाटक में जेडीएस, तमिलनाडु में कभी अन्ना द्रुमक कभी द्रुमक, जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, दिल्ली में आप जैसे क्षेत्रीय दलों की समय-समय पर पिछलग्गू बन कर कांग्रेस पार्टी इन बड़े प्रदेशों में अपना जनाधार खो चुकी है। अपने बूते कांग्रेस इन प्रदेशों में खाता तक खोलने की स्थिति में नहीं है।
क्या करे कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी को अपने संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। पार्टी में जमीन से जुड़े लोगों को आगे लाना चाहिए। राज्यसभा के रास्ते वर्षों से सत्ता का सुख भोगने वाले बड़बोलों से पार्टी को पीछा छुड़ाना चाहिए।