आज की परिस्थिति पर मेरी राजनीतिक टिप्पणी
हिंसक आंदोलन, विपक्ष का कुल्हाड़ी पर पैर पटकना ही है  !

सतीश जोशी 

वामपंथी, नेहरूवादी, जनवादी, समाजवादी विचारकों से वैचारिक संघर्ष कर 2014 मे सत्ता में आए राष्ट्रवादी विचार से मुकाबला मुश्किल हो गया है या अगले चुनाव में उसे सत्ता से आसानी से बेदखल किया जा सकता है, या फिर उसे हटाना कठिन होता जा रहा है। इसलिए देश भर में उभर आए दृष्य नरेन्द्र मोदी की मुश्किलें बढाने के लिए पैदा किए गये हैं । अमित शाह के गृह मंत्री के रहते कानून व्यवस्था को सवालों के घेरे में लाया जाए। जो लोग बहुमत के सहारे सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने की राजनीति करते रहे वे संसद में पारित नागरिकता क़ानून को सडक के बवाल से वापस लेने का दबाव बना रहे हैं । शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने वाली हिंसक राजनीति आज नागरिकता कानून को बदलने की राजनीति का अलग  रूप है। तब सत्ता ने हथियार डाल दिए थे, क्या आज की सत्ता भी इस हिंसक राजनीति के सामने समर्पण कर देगी?


 राष्ट्रवादी विचार ने देश में एकतरफा विमर्श के बावजूद 2014 तक इंतजार किया। जनमानस में सास्कृतिक राष्ट्रवाद का दीपक जलाया, उसकी राह में कीचड़ फैलाया गया पर उसने अपने सवालों के जरिये आखिर कमल की फसल उगा ही ली। जिन सवालों,  विचार,  कार्यक्रमों के लिए लाठी गीली खाकर एक पीढ़ी ने अपने को खपा दिया और आज जब उन्हीं सिद्धांतों को वह देश के संविधान की परिधि में रहकर  बहुमत से पारित और लागू करना चाहती है  तो शोर, हिंसा के जरिये उसके मार्ग में पत्थर बिछाए जा रहे हैं । झूठ, अफवाहों,  कुतर्को के हथियार से सत्ता की मुश्किलें बढाई जा रही है। जिस धर्म,  सम्प्रदाय के बहाने विपक्ष,  थकाहारा विचार राष्ट्रवाद को शिकस्त देने के लिये साम, दाम, दंड पर उतर आया है। पूर्वोत्तर भारत, दक्षिण, उत्तर भारत से बंगाल तक आंदोलनकारी जो सवाल खडे कर रहे हैं,  उनको जवाब संसद के दोनों सदनों मे गृहमंत्री अमित शाह दे चुके हैं,  सरकार ने सभी प्रश्नों पर बेबाकी से जवाब दिए। बहुमत के जरिये विपक्ष को शिकस्त दी। 

दरअसल धारा 370, राम मंदिर, से लेकर कश्मीर में तेजी से होती सामान्य स्थिति प्रतिपक्ष के आंखो में किरकिरी की तरह चुभ रही है। राष्ट्रवादी एजेंड पर तेजी से आगे बढती मोदी सरकार की गतिशीलता विपक्ष को खटक रही है। वह उसकी गति को रोकना चाहती है। ममता बनर्जी तो ऐसी राह पर चल पडी है कि एन आर सी और नागरिकता क़ानून पर जनमत संग्रह के लिए संयुक्त राष्ट्र महासंघ का दरवाजा खटखटाना चाहती है। जवाहरलाल नेहरू का यह नया अवतार राजनीति का विक्रत चेहरा है। आने वाले दिनों में यह कर्कशता और बढेगी। इवीएम मशीनों मे हारा विपक्ष सडक पर दो-दो हाथ करना चाहता है। 

सावधान! विपक्ष यह समझ ले कि सडक पर उतर आए लोग जितने उग्र होँगे,  नरेन्द्र मोदी,  अमित शाह उतने मजबूत होंगे,  भाजपा को और अधिक ताकत मिलेगी। इस तरह की राजनीति में विपक्ष यदि मास्टर है तो भाजपा हैडमास्टर । गाय, परमाणु बम, हिन्दुत्व, राम मंदिर से मजबूत हुई भाजपा को यह हिंसक आदोलन भाजपा के लिए खाद पानी और विपक्ष के लिए कुल्हाड़ी पर पैर पटना ही है।